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यमुनाष्टक

Yamunashtak 

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।। यमुनाष्टक ।।

- श्री हित हरिवंशचन्द्र महाप्रभु जी कृत

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व्रजाधिराज नंदनाम्बुदाभ गात्र चंदना – नुलेप गन्ध वाहिनीं भवाब्धि बीज दाहिनिम् |

जगत्रये यशस्विनीं लसत्सुधा पयस्विनीं, भजे कालिन्दनन्दिनीं दुरन्त मोह भंजिनीं ||

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रसैक सीम राधिका पदाब्ज भक्ति-साधिकां, तदंग राग पिंजर प्रभाति पुंज मंजुलाम |

स्वरोचिषाति शोभितां कृतां जनाधि गंजनां, भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्त मोह भंजिनीम ||

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व्रजेंद्र-सुनू-राधिका ह्रदि प्रपुर्य माणयो, मॅहा रसाब्धि पूरयोरिवाति तीव्र वेगत: |

बहि: समुच्छलनंव प्रवाह-रुपिणीमहं, भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरंत मोह भंजिनीम् ||

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विचित्र रत्न बद्ध सत्तटद्रयश्रियोज्ज्वलां, विचित्र हंस सारसाध्यनंत पक्षि संकुलाम |

विचित्र मीनमेेेखलां कृतातिदीन पालीतां, भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्त मोह भंजिनीम् ||

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वहंतिकां श्रियां हरेॅ मुदा कृपा स्वरूपिणीं, विशुद्ध भक्ति मुज्जवलां परे रसात्मिकां विदुः |

सुधाश्रुतित्व लौकिकीं परेशवर्ण रुपिणीं, भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्त मोह भंजिनीम् ||

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सुरेन्द्रवृन्द वन्दितां रसादधिष्ठिते वने, सदोपलब्ध माधवाद्भुतैक सद्रशोन्मदाम् |

अतीव विह्वलामिवच्चलत्त रंग डोलॅतां, भजे कलिंदनंदिनीं दुरंत मोह भंजिनीम् ||

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प्रफुल्ल पंकजाननां लसन्नवोत्पलेक्षणां, रथांगनाम युग्मकस्तनी मुदार हंसिकाम् ||

नितम्ब चारु रोधसां हरेःप्रिया रसोज्वलां, भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्त मोह भंजनीम् ||

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समस्त वेद मस्तकैरगम्य वैभवां सदा, ममहामनीन्द्र नारदादिभी सदैव भाविताम् |

अतुल्य पामरैरपीश्रितां पुमर्थ शारदां, भजे कलिंदनंदिनीं दुरंत मोह भंजिनीम् ||

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य एतदष्टकं बुधस्त्रिकाल मादत: पठे, त्कलिन्दनन्दिनीं ह्रदा विचिंन्त्य विश्व वंदिताम् |

इहैव राधिकापतै: पदाब्ज भक्तिमुत्तमा, मवाप्य स ध्रुवं भवेत्परत्र ततप्रियानुगः ||

|| इति श्री यमुनाष्टक||