Yamunashtak
||१||
व्रजाधिराज नंदनाम्बुदाभ गात्र चंदना – नुलेप गन्ध वाहिनीं भवाब्धि बीज दाहिनिम् |
जगत्रये यशस्विनीं लसत्सुधा पयस्विनीं, भजे कालिन्दनन्दिनीं दुरन्त मोह भंजिनीं ||
||२||
रसैक सीम राधिका पदाब्ज भक्ति-साधिकां, तदंग राग पिंजर प्रभाति पुंज मंजुलाम |
स्वरोचिषाति शोभितां कृतां जनाधि गंजनां, भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्त मोह भंजिनीम ||
||३||
व्रजेंद्र-सुनू-राधिका ह्रदि प्रपुर्य माणयो, मॅहा रसाब्धि पूरयोरिवाति तीव्र वेगत: |
बहि: समुच्छलनंव प्रवाह-रुपिणीमहं, भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरंत मोह भंजिनीम् ||
||४||
विचित्र रत्न बद्ध सत्तटद्रयश्रियोज्ज्वलां, विचित्र हंस सारसाध्यनंत पक्षि संकुलाम |
विचित्र मीनमेेेखलां कृतातिदीन पालीतां, भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्त मोह भंजिनीम् ||
||५||
वहंतिकां श्रियां हरेॅ मुदा कृपा स्वरूपिणीं, विशुद्ध भक्ति मुज्जवलां परे रसात्मिकां विदुः |
सुधाश्रुतित्व लौकिकीं परेशवर्ण रुपिणीं, भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्त मोह भंजिनीम् ||
||६||
सुरेन्द्रवृन्द वन्दितां रसादधिष्ठिते वने, सदोपलब्ध माधवाद्भुतैक सद्रशोन्मदाम् |
अतीव विह्वलामिवच्चलत्त रंग डोलॅतां, भजे कलिंदनंदिनीं दुरंत मोह भंजिनीम् ||
||७||
प्रफुल्ल पंकजाननां लसन्नवोत्पलेक्षणां, रथांगनाम युग्मकस्तनी मुदार हंसिकाम् ||
नितम्ब चारु रोधसां हरेःप्रिया रसोज्वलां, भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्त मोह भंजनीम् ||
||८||
समस्त वेद मस्तकैरगम्य वैभवां सदा, ममहामनीन्द्र नारदादिभी सदैव भाविताम् |
अतुल्य पामरैरपीश्रितां पुमर्थ शारदां, भजे कलिंदनंदिनीं दुरंत मोह भंजिनीम् ||
||९||
य एतदष्टकं बुधस्त्रिकाल मादत: पठे, त्कलिन्दनन्दिनीं ह्रदा विचिंन्त्य विश्व वंदिताम् |
इहैव राधिकापतै: पदाब्ज भक्तिमुत्तमा, मवाप्य स ध्रुवं भवेत्परत्र ततप्रियानुगः ||
|| इति श्री यमुनाष्टक||