श्रीहित हरिवंश महाप्रभु जी का चिड़थावल गाँव में आगमन, ऐसा लगा की पहले से ही सबको विवाह को जानकारी थी , सजावट पहले से हो रखी थी बस महाप्रभु के आगमन की आस थी। महाप्रभु जी ने आत्मदेव ब्राह्मण जी को देखे , “ आत्मदेव ब्राह्मण जी बहुत ही वृद्ध व्यक्ति थे , एवं निर्धनता के कारण अपने बेटियो का विवाह नहीं दे पा रहे थे , इस चिंतन में हमेशा बीमार हो रहते है सेवा भी नहीं कर पाते थे” । आत्मदेव ब्राह्मण जी ने अपनी असीम तपस्या से शंकर जी को रिझा लिए एवं उनको प्राकट्य होना पारा , शंकर जी ने आत्मदेव ब्राह्मण की भक्ति से प्रशन होकर उनसे वर मांगने की आज्ञा ही , वे शंकर जी के दर्शन से ही तृप्त थे , निर्धन होने के बंजूद भी उन्होंने शंकर जी से कोई भी वस्तु नहीं मांगा , उन्होंने शंकर जी से कहा “ प्रभु जो आपको सबको प्रिय है वो दे दीजिए” ये सुन शंकर जी इतने भोले है उन्होंने अपने सबसे प्रिय अपने ईस्ट श्री राधावल्लभ लाल जू का विग्रह आत्मदेव ब्राह्मण जी को दे दिए , शंकर जी श्री राधावल्लभ लाल जी को कल्प कोटि वर्षों तक अपने स्थान कैलाश पर्वत पे सेवा किए है , शंकर जी ने अपने हृदय से निकालकर आपने ईस्ट श्री राधावल्लभ लाल जू को आत्मदेव ब्राह्मण को सौप दिए और उन्हें सेवा विधि भी समझाए । शंकर जी ने निकुंज में ही हिट सजनी जू को श्री राधावल्लभ लाल जी की सेवा विधि समझा दिए थे और शंकर जी के कृपा से ही एवं श्रीजी के आज्ञा से धराधाम भूलोक में श्री हित हरिवंश महाप्रभु जी अपने प्राण श्री राधावल्लभ लाल जी की सेवा एवं श्री प्रिया लाल जू के हितमायी प्रेमरस बाटने के लिए अवतरित हुए ।
आत्मदेव ब्राह्मण श्रीहित जी को देखते ही आँखो से अश्रु आ गया गाँव वालो को बुला उन्होंने अपने दोनों बेटिया कृष्णदासी जी और मनोहरदासी जी का पाणिग्रहण श्रीहित हरिवंश महाप्रभु जी से करवा दिए । विदाई के पश्चात आत्मदेव ब्राह्मण श्रीहित जी के चरणों को पकड़ कर रोने लगे , वे कहने लगे जिनके लिए साक्षात श्रीजी स्वप्न में दर्शन देकर आदेश दिए , मेरे अहो भाग्य आप में ही श्रीजी के दर्शन हो रहे है , वे रोते रोते अपने बेटियों का हाथ एवं श्री राधावल्लभ लाल जी को श्रीहित हरिवंश महाप्रभु को सौंपते है , श्रीहित जी अपने हृदय से लाकर राधावल्लभ जी को निहारते है एवं अपने हित सजनी श्रीजी की प्रिय सखी भाव में आकर श्रीजी के चरणों को स्पर्श करते है । आत्मदेव ब्राह्मण रोते रोते महाप्रभु जी दर्शन मात्र से ही निकुंज लीलाओ का अनुभव करते हुए वही अपना देह त्याग देते है मानो उनकी प्राण अपनी बेटियो के विदाई के मोह में ही फसा था। महाप्रभुजी नव विवाहित बधुओं, अपने अनुयायी एवं श्री राधावल्लभ लाल जी के साथ चिड़थावल ग्राम से वृंदावन की ओर प्रस्थान किए। वृंदावन पहुँच कर श्रीजी की आज्ञा अनुसार श्री राधावल्लभ लाल जी के स्वरूप को सुंदर लता पता से प्रेममयी निकुंज का निर्माण किए एवं विधिवत् सेवा कर सभी रसिक भक्तों को सुख प्रदान किए ।