श्रीहित वृन्दावन धाम कौ मण्डल
श्री हित चाचा वृन्दावन दास जी प्रणीत
जै जै श्री वृन्दावन रसिकन प्राण हैं |
प्रभु-पद दाता सबनि, रसहिं की खान हैं ||
कैसौउ पापी करत, आनि जो बास है |
दूर होत तत्काल तासु की त्रास है ||
तत्काल त्रास जू जात, ताकौ होत निर्मल गात है |
पावत महल की टहल जहँ नित, सह्चरिन कौ वास है ||
दसरत जुगल छबी नैंन अनुपम, करत गुन कौ गान है |
जै जै श्रीवृन्दावन रसिकन प्राण हैं || 1 ||
जै जै श्रीवृन्दावन, अति शोभा मई |
पिय प्यारी कौ धाम, प्रेम विधि-निर्मई ||
अद्भूत छटा विलोकि, दृगनि सुख होत है |
निर्तत जुगल किशोर, सु जगमग जोति है ||
जोत जगमग होत, तिनकी कहा शोभा गाइये |
दस-नौ चरन के चिन्ह, श्री यमुना-पुलिन में पाइये ||
गावत मोर मराल जिनकी, केलि कल नित नित नई |
जै जै श्रीवृन्दावन, अति शोभा मई || 2 ||
जै जै श्रीवृन्दावन कहा महिमा कहौं |
मोमति एती नाहिं, अन्त ताकौ लाहौं ||
शेष महेश सुरेश, न पावत पार कौं |
अज-मति हू वौराय, करत जु विचार कौ ||
विचार कौं बौराय अज-मति, कहा गुन वरनन करूँ |
अति दिव्य जटित मणीन भूमि सौं ध्यान कैसे हौं धरुँ ||
निसि दिवस करत विचार यह, आकाश फल कैसे लहौ |
जै जै श्रीवृन्दावन कहा महिमा कहौं || 3 ||
जै जै श्री वनराजहिं मस्तक नाइये |
याही के परताप जुगल पद पाइये ||
कार्तिक सुदि तेरस कौं जन्म जू जानिये |
दुतिय प्रभु कौ रूप, सु ताकौं मानिये ||
मानि प्रभु कौ रूप ताकौं, विटप वेलि भ्राज हीं |
भानुजा के तीर दोऊ, स्याम स्याम राज हीं ||
वृन्दावन हित रूप मंगल, रसिक जन सुखादाइये |
जै जै श्री वनराजहिं मस्तक नाइये || 4 ||
श्रीहित वृन्दावन धाम जु के मण्डल की जै जै श्रीहरिवंश